राष्ट्रपति ट्रंप ने लंबी बातचीत के बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का समझौता किया और जो बाइडन प्रशासन ने शुरुआती ना नुकुर के बाद इसे स्वीकार कर लिया।। अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही अफ़गान तालिबान ने योजनाबद्ध तरीके से अफगानिस्तान पर कब्ज़ा शुरू कर दिया लेकिन अभी तक बड़े शहरों को छोड़कर छोटे छोटे इलाकों में अपने पैर जमाने शुरू किए हुए है और सबसे महत्वपूर्ण तजाकिस्तान से जुड़ने वाली मुख्य सड़क पर अपना नियंत्रण स्थापित किया है।
तालिबान के बढ़ते कदमों से घबरा कर वर्तमान सरकार के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने वाशिंगटन यात्रा का कार्यक्रम बनाया जिससे अमेरिकी राष्ट्रपति को अफगानिस्तान में रुकने अथवा उन्हे जीवन दान देने की गुहार लगाई जा सके।। इसके लिए राष्ट्रपति गनी अपने साथ 51 सदस्यों के भारी भरकम शिष्टमंडल को साथ लेकर विशेष विमान से गए जिसमे विदेशमंत्री, गृहमंत्री तथा सुरक्षा सलाहकार एवम् सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख भी थे लेकिन विदेशमंत्री को करोना पॉजिटिव होने के कारण तथा अन्य को भी किसी न किसी बहाने राष्ट्रपति बाइडेन से मुलाकात का अवसर नहीं मिला।
व्हाइट हाउस में केवल राष्ट्रपति अशरफ गनी तथा चीफ एक्जीक्यूटिव अब्दुल्ला अब्दुल्ला को आने दिया गया और उन्हें स्पष्ट कर दिया गया कि अमेरिका भविष्य में किसी कभी न खत्म होने वाले युद्ध में शामिल नहीं रहना चाहता तथा अब अफगानिस्तान का भविष्य अफ़गान जनता को ही तय करने दिया जाए।। इस प्रकार कह सकते हैं कि अशरफ गनी को निराशा हाथ लगी तथा साथ ही उनके द्वारा सैनिकों के रुकने के प्रस्ताव का जवाब यूएस ने बड़गाम का एयर बेस खाली करके दिया इसके साथ ही भारत को भी अपने दो काउंसलेट ऑफिस बंद करने पड़े।
इससे पहले एक प्रस्ताव रखा गया था कि संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में इस्तांबुल में एक बड़ी बैठक आयोजित हो जिसमे भारत सहित अन्य देशों की भी भागीदारी हो एवम् अशरफ गनी सरकार को हटाकर एक नेशनल केयर टेकर गर्वनमेंट नए चुनाव कराए।। यद्धपि तालिबान चाहते थे कि पहले देश में इस्लामिक पद्धति का शासन हो फिर उसके बाद जनता की राय पर अमीर का चुनाव किया जाए किन्तु अशरफ गनी ने सत्ता छोड़ने से साफ इंकार कर दिया।। पाकिस्तान भी चाहता है कि तालिबान का निर्बाध शासन "न" आए अन्यथा पाकिस्तान में भी इस्लामिक व्यवस्था की मांग उठ सकती हैं।
इन परिस्थितियों में आशंका बलवती हो रही हैं कि कहीं अफगानिस्तान किसी भयावह गृहयुद्ध में न धकेल दिया जाए हालांकि चीन द्वारा भरकस प्रयत्न किया जा रहा है कि वहां शांति बनी रहे और उसकी BRI परियोजना सफतापूर्वक सम्पन्न हो। पाकिस्तान द्वारा अपनी सीमाएं सील करने के साथ ही तालिबान को संकेत दे दिया गया है कि पाकिस्तान सरकार उनका अंध समर्थन नहीं करने जा रही और भारत द्वारा अपने दो काउंसलेट ऑफिस बंद करके तालिबान को सहयोग देने का संकेत जरूर दिया गया किन्तु क्योंकि भारत की कोई सीमा अफगानिस्तान से नहीं मिलती तो भारत की भी अपनी मजबूरियां हैं।
इनके बीच अफगानिस्तान के निकटतम पड़ोसी ईरान द्वारा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करना किसी भी समाधान के संशय को बढ़ाता है।। यदि ईरान और भारत के सम्बन्ध फिर से पहले जैसे दोस्ताना हो जाते है तो भारतीय हितों की रक्षा सम्भव है किन्तु यदि ईरान से अमेरिकी प्रतिबन्ध हटा लिए जाते है और पुरानी न्यूक्लियर संधि को बहाल कर दिया जाता हैं तो ईरान अपने हितों को सर्वोपरि रखेगा हालांकि गत दिनों यूएस द्वारा ईरान समर्थित इराक के कुर्द इलाकों पर बमबारी करके इसकी उम्मीदों को धूमिल कर दिया है।
यदि निराश अशरफ गनी गद्दी छोड़कर नेशनल गवर्नमेंट बनाने पर राजी हो जाते है और उसमे तालिबान को उचित सम्मान सहित शक्तियां सौंप देते है तो उम्मीद की जा सकती है कि अफ़गान तालिबान एवम् पाकिस्तान इस प्रस्ताव पर सहमत हो जाएंगे। ब्लिंकन प्रस्ताव भी यही था किंतु वो जलमे खलिलजाद को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाना चाहते थे। किन्तु यदि ऐसा नहीं होता तो निश्चित रूप से अफगानिस्तान भयंकर गृहयुद्ध की चपेट मे आ सकता है और उससे उठने वाली प्रोक्सी की चिंगारियां भारत सहित क्षेत्र को अपनी चपेट मे ले सकती हैं जिससे सबको बचना चाहिए।
फिलहाल ज्यादा दारोमदार ईरान के नए राष्ट्रपति हज़रत रईसी की नीतियों और फैसलों पर निर्भर करता है जो 5 अगस्त को कार्यभार संभालेंगे।। LET US HOPE FOR THE BEST
आंगन में सांप घुस आया और उसकी दहशत से परिवार पहले तो घर के अंदर सांस रोक कर छिपा रहा लेकिन बाद मे सांप की लकीर पीट कर खुद को बहादुर और बुद्धिमान साबित करने की कोशिश करने लगा। कुछ ऐसा ही दक्षिण एशिया में शह और मात जैसे खेल खेलने में भारत सरकार का विदेश मंत्रालय नजर आ रहा है। ...
अंतरराष्ट्रीय राजनीति और दुनियां के बदलते समीकरण की बात करते ही सबसे महत्वपूर्ण घटना अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज का बीस साल की जद्दोजहद के बाद अफगानिस्तान को छोड़ कर निकल जाना है। ...
20 साल तक जमीन के छोटे से टुकड़े और क़बीलाई संस्कृति वाले दिलेर लोगो की बस्ती पर विश्व के 40 देशों एवम् महाशक्ति अमेरिका की फोर्सेज कोशिश करती रही कि वहां भी पश्चिमी जगत बना दिया जाए। उसी समय ( 2001) पाकिस्तान के हामिद गुल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि इस प्रयास में अमेरिका को अमेरिका द्वारा ही हराया जाएगा और वही हुआ। ...
स्लतनतों की कब्रगाह के नाम से प्रसिद्ध धरती का ऐसा भूभाग जिसकी मिट्टी में युद्ध और अशांति जंगली घास की तरह उपजती है। दक्षिण एशिया और मध्य एशिया को जोड़ने वाले इस सामरिक महत्व के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हिस्से को अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है। मैथोलॉजी और किवदंतियों में महाभारत से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य तक का सम्बन्ध तत्कालीन गांधार देश से जोड़ा जाता हैं तो अलेक्जेंडर और रोमन साम्राज्य से भी टकराने के लिए याद किया जाता है किन्तु क्या इसका वास्तविक इतिहास ऐसा ही था ? ...
जिस तेजी से और सामरिक योजना से तालिबान आगे बढ़ रहे है और सम्भावना जताई जा रही है कि वो काबुल फतह कर लेंगे तो क्या इसके बाद क्षेत्र में शांति स्थापित हो जाएगी या एक नया खतरा बढ़ जाएगा। ...
एक ओर तो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की आशंका बढ़ रही हैं तो दूसरी ओर सभी पक्ष अपनी अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित है। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ साथ अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी को कोई सकारात्मक आश्वासन न मिलना क्षेत्र के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। ...
बीस साल से चल रही जंग की समाप्ति के साथ ही अमेरिका द्वारा अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही अफ़गान तालिबान द्वारा अधिकांश क्षेत्रो पर कब्जे के बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की। ...
जिस तेजी से अमेरिकी सैनिकों की वापसी अफगानिस्तान से हो रही है और तालिबान द्वारा अफ़गान जमीन पर अपना कब्ज़ा कायम किया जा रहा है उससे सम्भावित भविष्य के हालात पर तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन से एक बात।। ...
तेजी से अफगानिस्तान को विकल्पहीन छोड़कर निकलती नाटो एवम् अमेरिकी फोर्सेज के बाद अफगानिस्तान का भविष्य एक बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है।। ...
भारतीय विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर प्रसाद की दोहा एवम् कुवैत यात्रा के बीच अफगानिस्तान के सरकारी मीडिया टोलो न्यूज द्वारा भारत द्वारा तालिबान से सम्पर्क करने की खबर का क्या अर्थ हो सकता है ? ...
जैसे जैसे अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज अफगानिस्तान से अपने अड्डे खाली कर रहे है और अफगानिस्तान से निकल रहे हैं वैसे ही दक्षिण एशिया किसी बड़े युद्ध की ओर तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है।। ...
अफगानिस्तान से अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही भड़के गृहयुद्ध से भारत को अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए।। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कार्यक्रम के साथ दिए जा रहे बयानात के मद्देनजर अभी दक्षिण एशिया में शांति की उम्मीद नहीं की जा सकती। ...