बीस साल से चल रही जंग की समाप्ति के साथ ही अमेरिका द्वारा अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही अफ़गान तालिबान द्वारा अधिकांश क्षेत्रो पर कब्जे के बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की। अफ़गान राष्ट्रपति के साथ सरकार के चीफ एक्जीक्यूटिव डॉ अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह तथा उनके सुरक्षा सलाहकार एवम् सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख भी थे। आशा की जा रही थी कि अफ़गान तालिबान के साथ समझौते के बाद कोई सर्वमान्य समाधान निकल जाएगा और दक्षिण एशिया में शांति एवम् समृद्धि का नया युग प्रारम्भ होगा।
लेकिन जिस प्रकार होंटों और प्याले के बीच की दूरी होती हैं उसी प्रकार अफगानिस्तान की शांति के प्रयास है। लंबी बातचीत के बाद तय हुआ था कि अप्रैल महीने में तुर्की में एक बड़ी बैठक संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में होगी जिसमे भारत सहित कई देश हिस्सा लेंगे और वर्तमान अफ़गान सरकार एवं तालिबान के बीच कोई समझौता हो जाएगा।
किन्तु तालिबान द्वारा वर्तमान संविधान तथा व्यवस्था को नकार कर इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना की जिद के कारण ऐसा नहीं हो पाया और तुर्की द्वारा सुरक्षा व्यवस्था संभालने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया गया क्योंकि तुर्की बतौर नाटो सदस्य अभी तक वहां उपस्थित था।। दूसरी ओर तालिबान निरन्तर अधिक से अधिक क्षेत्र अपने कब्जे में लेते चले गए एवम् तजाकिस्तान से मिलने वाली मुख्य सड़क एवम् सीमा पर भी अपना कब्ज़ा कर लिया जिससे आधिकारिक अफ़गान सैनिक तजाकिस्तान भाग गए।
तालिबान की तेजी से होती बढ़त एवम् सरकारी सेना द्वारा उनके आगे किए जा रहे आत्मसमर्पण से वर्तमान अफ़गान सरकार एवं राष्ट्रपति अशरफ गनी के लिए चिंता का कारण बन गया। यदि इन हालात में अमेरिका अशरफ गनी को उसके हाल पर छोड़ कर निकल जाता तो अमेरिका का भरोसा टूटता था और यदि उनके समर्थन में अपने सैनिक न निकालता तो तालिबान से किया गया समझौता एवम् कभी खत्म न होने वाले युद्ध का सामना करता रहता।
इन परिस्थितियों में पेंटागन को उम्मीद थी कि पाकिस्तान उन्हे कम से कम एक अड्डा जरूर दे देगा जिसके आधार पर वो अपनी दखल बनाए रखने में कामयाब रहेंगे किन्तु पाकिस्तान सरकार द्वारा साफ तौर पर सेनाओं की वापसी के बाद किसी प्रकार के सहयोग से इंकार कर दिया गया।। यदि एक बार यूएस फोर्सेज निकल जाती हैं तो क्षेत्र में चीन की बढ़त को रोकना असम्भव होगा तथा चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव अमेरिका के आर्थिक हितों के अनुकूल न होने के बावजूद उसे रोका नहीं जा सकता था।। अशरफ गनी द्वारा संभव है कि यही सब बाते कही गई होंगी !
हालांकि राष्ट्रपति बाइडेन ने दोनों को अमेरिका का पुराना मित्र बताया है लेकिन राष्ट्रपति बाइडेन ने साथ ही यह भी कहा है कि अफ़गान जनता को उनके भाग्य का फैसला करने दिया जाना चाहिए और व्यर्थ के खून खराबे से परहेज़ करना चाहिए।। राष्ट्रपति गनी ने दावा किया है कि उनकी फोर्सेज ने तालिबान से 4 जिले वापिस छीन लिए है और साथ ही पाकिस्तान सरकार ने अफ़गान बॉर्डर सख्ती से सील करने के आदेश जारी किए हैं।। यदि इन सभी घटनाओं को क्रमवार जोड़कर विश्लेषण किया जाए तो अहसास होता है कि अफगानिस्तान किसी भयावह आंतरिक अराजकता के चंगुल में फसने जा रहा है और वैसे भी अमेरिका का इतिहास भी यही बताता है कि यूएस ने किसी देश को छोड़ने से पहले वहां अशांति और गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा करके छोड़ा है।
अन्तिम समय में पेंटागन ने संकेत दिए हैं कि उनके मात्र 650 सैनिक अफगानिस्तान में मौजूद रहेंगे। इसके पीछे मुख्य कारण यह हो सकता है कि जब तक यूएस फोर्सेज अफ़गान जमीन पर रहेंगी तब तक पाकिस्तान को अमेरिका के लिए मदद देना जरूरी होगा जैसा की पूर्व में समझौता किया हुआ है।। लेकिन क्या इसे चीन की मदद से तालिबान स्वीकार करेगा ? यदि ऐसा होता है तो चीन की सड़क परियोजना पर भी सवालिया निशान लग सकता है जो उसे कभी स्वीकार्य नहीं होगा।। इन परिस्थितियों में भारत अहम भूमिका निभा सकता है यद्धपि भारत के सुरक्षा सलाहकार का डॉक्ट्रिन इसके विपरीत है।
भारत यदि प्रयास करें तो अशरफ गनी को शांति पूर्वक सत्ता छोड़ने के लिए राजी कर सकता है और इसके लिए तालिबान ( जिनकी भविष्य में सरकार बनना लगभग तय समझा जा रहा है ) से अपने हितों की रक्षा एवम् अपने निवेश की रक्षा के लिए समझौता कर सकता है।। किन्तु यदि ऐसा नहीं होता और अफगानिस्तान किसी अराजकता के भंवर में फस कर जलने लगता है तो उसकी आंच भारत तक आने से रोकना बहुत कठिन होगा।
याद रखना चाहिए कि कल तक यही तालिबान अमेरिका के सहयोगी भी रहे हैं और यूएस अपने हितो के लिए किसी की भी बलि चढ़ाने से गुरेज नहीं करता। वैसे भी शांति से बेहतर किसी भी युद्ध को जीतने का कोई दूसरा विकल्प नहीं होता और एक भी दोस्त न होने से अच्छा एक भी दुश्मन न होना होता है।। Let us cross our fingers and hope for the best
आंगन में सांप घुस आया और उसकी दहशत से परिवार पहले तो घर के अंदर सांस रोक कर छिपा रहा लेकिन बाद मे सांप की लकीर पीट कर खुद को बहादुर और बुद्धिमान साबित करने की कोशिश करने लगा। कुछ ऐसा ही दक्षिण एशिया में शह और मात जैसे खेल खेलने में भारत सरकार का विदेश मंत्रालय नजर आ रहा है। ...
अंतरराष्ट्रीय राजनीति और दुनियां के बदलते समीकरण की बात करते ही सबसे महत्वपूर्ण घटना अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज का बीस साल की जद्दोजहद के बाद अफगानिस्तान को छोड़ कर निकल जाना है। ...
20 साल तक जमीन के छोटे से टुकड़े और क़बीलाई संस्कृति वाले दिलेर लोगो की बस्ती पर विश्व के 40 देशों एवम् महाशक्ति अमेरिका की फोर्सेज कोशिश करती रही कि वहां भी पश्चिमी जगत बना दिया जाए। उसी समय ( 2001) पाकिस्तान के हामिद गुल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि इस प्रयास में अमेरिका को अमेरिका द्वारा ही हराया जाएगा और वही हुआ। ...
स्लतनतों की कब्रगाह के नाम से प्रसिद्ध धरती का ऐसा भूभाग जिसकी मिट्टी में युद्ध और अशांति जंगली घास की तरह उपजती है। दक्षिण एशिया और मध्य एशिया को जोड़ने वाले इस सामरिक महत्व के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हिस्से को अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है। मैथोलॉजी और किवदंतियों में महाभारत से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य तक का सम्बन्ध तत्कालीन गांधार देश से जोड़ा जाता हैं तो अलेक्जेंडर और रोमन साम्राज्य से भी टकराने के लिए याद किया जाता है किन्तु क्या इसका वास्तविक इतिहास ऐसा ही था ? ...
जिस तेजी से और सामरिक योजना से तालिबान आगे बढ़ रहे है और सम्भावना जताई जा रही है कि वो काबुल फतह कर लेंगे तो क्या इसके बाद क्षेत्र में शांति स्थापित हो जाएगी या एक नया खतरा बढ़ जाएगा। ...
एक ओर तो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की आशंका बढ़ रही हैं तो दूसरी ओर सभी पक्ष अपनी अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित है। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ साथ अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी को कोई सकारात्मक आश्वासन न मिलना क्षेत्र के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। ...
इस प्रकार बहुचर्चित अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी की अमेरिकी यात्रा खत्म हुई । वापसी के बाद अफगानिस्तान एवम् दक्षिण एशिया के भविष्य की क्या स्थिति हो सकती हैं। ...
जिस तेजी से अमेरिकी सैनिकों की वापसी अफगानिस्तान से हो रही है और तालिबान द्वारा अफ़गान जमीन पर अपना कब्ज़ा कायम किया जा रहा है उससे सम्भावित भविष्य के हालात पर तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन से एक बात।। ...
तेजी से अफगानिस्तान को विकल्पहीन छोड़कर निकलती नाटो एवम् अमेरिकी फोर्सेज के बाद अफगानिस्तान का भविष्य एक बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है।। ...
भारतीय विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर प्रसाद की दोहा एवम् कुवैत यात्रा के बीच अफगानिस्तान के सरकारी मीडिया टोलो न्यूज द्वारा भारत द्वारा तालिबान से सम्पर्क करने की खबर का क्या अर्थ हो सकता है ? ...
जैसे जैसे अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज अफगानिस्तान से अपने अड्डे खाली कर रहे है और अफगानिस्तान से निकल रहे हैं वैसे ही दक्षिण एशिया किसी बड़े युद्ध की ओर तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है।। ...
अफगानिस्तान से अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही भड़के गृहयुद्ध से भारत को अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए।। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कार्यक्रम के साथ दिए जा रहे बयानात के मद्देनजर अभी दक्षिण एशिया में शांति की उम्मीद नहीं की जा सकती। ...