दक्षिण एशिया में साम्राज्यों का कब्रिस्तान कहलाने वाला देश अफगानिस्तान ! जिसके निवासियों के बारे में कहते हैं कि उनकी दोस्ती और दुश्मनी के साल नहीं पीढ़ियां गिनी जाती है।। अंततः अमेरिकी तथा नाटो फोर्सेज की वापसी न केवल शुरू हो चुकी है अपितु लगभग अंतिम चरण में भी है क्योंकि अमेरिकी सैनिकों ने अपने बचे हुए सामान को स्थानीय स्क्रैप डीलर्स एवम् निकटवर्ती गांव वालों को देना शुरू कर दिया है।। वर्तमान अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी देश से बाहर यूएस गए हुए हैं और उनके बारे में अफवाह है कि वो वापिस नहीं आएंगे तो अफ़गान वायु सेना और उसके हेलीकॉप्टरों को ग्राउंड कर दिया गया है।
यद्धपि अमेरिकी रक्षा सचिव ने स्पष्ट किया है कि पेंटागन का भविष्य में अफ़गान जमीन पर किसी कार्यवाही का कोई इरादा नहीं है किन्तु फिर भी किसी का और विशेषकर महाशक्ति का क्या भरोसा ? इन सबके बीच किसी माध्यम से तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन से बात सम्भव हुई और उन्होंने बताया कि तालिबान लगभग 80 प्रतिशत अफगानिस्तान का शासन संभाल चुके है और किसी भी समय काबुल पर कब्ज़ा कर सकते है लेकिन अपने दिए गए वचन और वायदे के कारण अभी ऐसा नहीं कर रहे है।
क्योंकि अफगानिस्तान एक लैंड लॉक देश है और काबुल एयरपोर्ट ही वहां का प्रवेश द्वार माना जाता है तो उसकी सुरक्षा किसी भी विदेशी नागरिक/सैनिक के होते हुए सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय होना चाहिए।। फिलहाल काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा नाटो सैनिकों के पास है लेकिन उसके लिए जब तुर्की को एयरपोर्ट सौंपने का प्रस्ताव रखा गया तो तालिबान ने सख्ती से मना कर दिया।
अपनी वार्ता में सुहैल साहब ने बताया कि बतौर नाटो सदस्य वो तुर्की का स्वागत नहीं करते बेशक मुस्लिम देश होने के कारण वो उसका स्वागत करेंगे तथा देश के पुनर्निर्माण में सहयोग भी मांगेंगे किन्तु ऐसा तालिबान द्वारा सत्ता संभालने के बाद ही सम्भव है।। तुर्की ने हंगरी एवम् पाकिस्तान के सहयोग से काबुल का प्रशासन संभालने का प्रस्ताव किया था लेकिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने ऐसी किसी सम्भावना या पाकिस्तान की इन्वॉल्वमेंट से साफ इंकार किया है।
तालिबान के प्रवक्ता ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात की है वो "अगर अमेरिका टैंको के बगैर आता है तो उसका खैरमकदम हैं" ध्यान देने लायक हैं।। सुहैल साहब के इस वाक्य से चीन को भी सीधा संदेश दे दिया गया है कि वो भी अफगानिस्तान तालिबान को अपनी पिट्ठू सरकार बनाने या समझने की कोई उम्मीद न रखे।
हालांकि जमीनी हालात को देखते हुए अभी शांति की आशा करना एक दिवास्वप्न ही होगा फिर भी शांति के सपने को साकार होने की उम्मीद छोड़नी नहीं चाहिए क्योंकि यदि अफ़गान के छप्पर में आग लगेगी तो चिंगारियां चारो ओर फैलेंगी ही फैलेंगी।।
आंगन में सांप घुस आया और उसकी दहशत से परिवार पहले तो घर के अंदर सांस रोक कर छिपा रहा लेकिन बाद मे सांप की लकीर पीट कर खुद को बहादुर और बुद्धिमान साबित करने की कोशिश करने लगा। कुछ ऐसा ही दक्षिण एशिया में शह और मात जैसे खेल खेलने में भारत सरकार का विदेश मंत्रालय नजर आ रहा है। ...
अंतरराष्ट्रीय राजनीति और दुनियां के बदलते समीकरण की बात करते ही सबसे महत्वपूर्ण घटना अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज का बीस साल की जद्दोजहद के बाद अफगानिस्तान को छोड़ कर निकल जाना है। ...
20 साल तक जमीन के छोटे से टुकड़े और क़बीलाई संस्कृति वाले दिलेर लोगो की बस्ती पर विश्व के 40 देशों एवम् महाशक्ति अमेरिका की फोर्सेज कोशिश करती रही कि वहां भी पश्चिमी जगत बना दिया जाए। उसी समय ( 2001) पाकिस्तान के हामिद गुल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि इस प्रयास में अमेरिका को अमेरिका द्वारा ही हराया जाएगा और वही हुआ। ...
स्लतनतों की कब्रगाह के नाम से प्रसिद्ध धरती का ऐसा भूभाग जिसकी मिट्टी में युद्ध और अशांति जंगली घास की तरह उपजती है। दक्षिण एशिया और मध्य एशिया को जोड़ने वाले इस सामरिक महत्व के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हिस्से को अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है। मैथोलॉजी और किवदंतियों में महाभारत से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य तक का सम्बन्ध तत्कालीन गांधार देश से जोड़ा जाता हैं तो अलेक्जेंडर और रोमन साम्राज्य से भी टकराने के लिए याद किया जाता है किन्तु क्या इसका वास्तविक इतिहास ऐसा ही था ? ...
जिस तेजी से और सामरिक योजना से तालिबान आगे बढ़ रहे है और सम्भावना जताई जा रही है कि वो काबुल फतह कर लेंगे तो क्या इसके बाद क्षेत्र में शांति स्थापित हो जाएगी या एक नया खतरा बढ़ जाएगा। ...
एक ओर तो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की आशंका बढ़ रही हैं तो दूसरी ओर सभी पक्ष अपनी अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित है। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ साथ अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी को कोई सकारात्मक आश्वासन न मिलना क्षेत्र के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। ...
इस प्रकार बहुचर्चित अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी की अमेरिकी यात्रा खत्म हुई । वापसी के बाद अफगानिस्तान एवम् दक्षिण एशिया के भविष्य की क्या स्थिति हो सकती हैं। ...
बीस साल से चल रही जंग की समाप्ति के साथ ही अमेरिका द्वारा अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही अफ़गान तालिबान द्वारा अधिकांश क्षेत्रो पर कब्जे के बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की। ...
तेजी से अफगानिस्तान को विकल्पहीन छोड़कर निकलती नाटो एवम् अमेरिकी फोर्सेज के बाद अफगानिस्तान का भविष्य एक बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है।। ...
भारतीय विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर प्रसाद की दोहा एवम् कुवैत यात्रा के बीच अफगानिस्तान के सरकारी मीडिया टोलो न्यूज द्वारा भारत द्वारा तालिबान से सम्पर्क करने की खबर का क्या अर्थ हो सकता है ? ...
जैसे जैसे अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज अफगानिस्तान से अपने अड्डे खाली कर रहे है और अफगानिस्तान से निकल रहे हैं वैसे ही दक्षिण एशिया किसी बड़े युद्ध की ओर तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है।। ...
अफगानिस्तान से अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही भड़के गृहयुद्ध से भारत को अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए।। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कार्यक्रम के साथ दिए जा रहे बयानात के मद्देनजर अभी दक्षिण एशिया में शांति की उम्मीद नहीं की जा सकती। ...