9/11 अमेरिका की ट्विन टॉवर के गिरने के साथ ही पेंटागन की घोषणा और आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध। लेकिन पाकिस्तान के शमशी हवाई अड्डे से 57,000 उड़ाने भरने, अरबों डॉलर खर्च करने और हज़ारों बेशकीमती जाने गवाने के बाद भी हासिल क्या हुआ ? लगातार बीस साल तक युद्ध करने के बाद आखिरकार ट्रंप सरकार को उसी तालिबान से समझौता करना पड़ा जो आज भी कानूनी रूप से आतंकवादी संगठन है।। बेशक War against Terror के खात्मे की आधिकारिक घोषणा की जा चुकी हैं लेकिन विभिन्न देशों द्वारा डिफेंस कॉन्ट्रेक्टर की नियुक्ति भी एक प्रकार से मानवता के विरूद्ध आतंकी कार्यवाहियां ही है।
पेंटागन ने जल्में खलीलजाद के माध्यम से लगभग दो साल तक लंबी बातचीत के बाद अफ़गान तालिबान के साथ समझौता किया और अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर सहमति बन गई लेकिन बाइडेन प्रशासन ने पहले तो समझौते पर पुनर्विचार की बात की किन्तु बाद में 11 सितम्बर तक खुद ही सैनिकों की वापसी की घोषणा कर दी तथा वापसी शुरू भी हो गई।। अब जिस तेजी से यूएस फोर्सेज अपने अड्डे खाली कर रही हैं इससे लगता है कि अमेरिका सितम्बर के बजाए 4 जुलाई तक ही अफगानिस्तान से निकलने की योजना बना चुका है।। लेकिन इन घटनाओं के बीच किसी भी शक्ति द्वारा भविष्य के लिए कोई विकल्प नहीं बताया गया और जाने अनजाने में अफगानिस्तान को कभी समाप्त न होने वाले गृहयुद्ध में धकेलने की साज़िश रच दी गई है।
तंगहार से लेकर हेलमंड और काबुल के बाहरी हिस्से तक तालिबान लड़ाकों , अशरफ गनी की सरकारी सेना तथा अन्य गुटो के बीच वर्चस्व एवम् कब्जे के लिए युद्ध के समाचार मिल रहे हैं।। नाटो फोर्सेज के भी निकलने के साथ तुर्की की सेना को काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है हालांकि देखना यह होगा कि तुर्की इसे निभा पाता है या नहीं क्योंकि फिलहाल तुर्की सेना में पायलेट बहुत कम है तथा दूसरी ओर उसने मध्य एशिया में भी अपनी सेनाओं की तैनाती की घोषणा कर दी है।। कुछ सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान द्वारा भी तालिबान को सैनिक मदद दिए जाने की रिपोर्ट्स मिल रही है तो दाईश के नाम पर ब्लैक वाटर के लड़ाकों की उपस्थिति भी बताई जा रही है।
इनके बीच हमे याद रखना चाहिए कि ईरान दुनियां में प्रॉक्सी वार के लिए सिद्धहस्त समझा जाता है एवम् उसकी अफगानिस्तान से लगती सीमाएं भी उसको निर्लिप्त रहने देगी इसकी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।। कुलमिलाकर समझा जा सकता है कि महाशक्तियों का अगला अखाड़ा दक्षिण एशिया ही तय हो चुका है और इस आग को बुझाने में यदि भारत ने अहम भूमिका न निभाई तो इसकी आंच से हाथ झुलसने लगभग तय है।। भारत सरकार ने गत सात वर्षो में जो मूर्खताएं की है उन्हे सुधारने का यह बेहतरीन मौका है और भारत को अपनी गलतियां सही कर लेनी चाहिए।। तुरन्त प्रभाव से सार्क देशों के संगठन को दोबारा एक्टिव करना चाहिए बेशक इसके लिए पाकिस्तान का सहयोग लेना पड़े, अफगानिस्तान में लड़ रहे सभी स्थानीय गुटों को साथ लेकर पहला लक्ष्य बाहरी आतंकियों से अफगानिस्तान को मुक्त कराने का बनाया जाए जिस पर सभी सहमत होंगे। सार्क शांति सेना का गठन एवम् उसकी नियुक्ति की घोषणा की जा सकती है जिससे तुर्की के वर्चस्व को न बढने दिया जाए क्योंकि तुर्की को भारत के पक्ष में नहीं समझा जा सकता विशेकर कश्मीर को लेकर उसके स्टैंड पर।
एक बार अफगानिस्तान में शांति कायम करने के बाद फिर वहां कोई भी लोकप्रिय सरकार को बागडोर सौंपी जा सकती है और उनकी मर्जी से लंबे समय तक सार्क शांति सेना तैनात भी रह सकती हैं।। किन्तु फिलहाल मोड़ी सरकार द्वारा ऐसा किए जाने की उम्मीद नहीं है बेशक सभी युद्ध रत समूह अपनी अपनी जीत का दावा करते रहे लेकिन आंख के बदले आंख वाली सोच के साथ बड़े हुए अफ़गान काबिले इंसानी खून से जमीन लाल करते रहेंगे।
ऐसा भी सम्भव है कि किसी गुट पर भारत द्वारा मदद मिलने का आरोप लगे और भारत के विरूद्ध कुछ और दुश्मन खड़े हो जाएं जिन्हे पाकिस्तान का सहयोग प्राप्त हो।। ऐसी स्थिति में युद्ध की आग कब भारत के आंगन में पहुंच चुकी इसका अहसास बहुत कुछ राख होने के बाद हो तो समझदार कौन कहेगा।।
आंगन में सांप घुस आया और उसकी दहशत से परिवार पहले तो घर के अंदर सांस रोक कर छिपा रहा लेकिन बाद मे सांप की लकीर पीट कर खुद को बहादुर और बुद्धिमान साबित करने की कोशिश करने लगा। कुछ ऐसा ही दक्षिण एशिया में शह और मात जैसे खेल खेलने में भारत सरकार का विदेश मंत्रालय नजर आ रहा है। ...
अंतरराष्ट्रीय राजनीति और दुनियां के बदलते समीकरण की बात करते ही सबसे महत्वपूर्ण घटना अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज का बीस साल की जद्दोजहद के बाद अफगानिस्तान को छोड़ कर निकल जाना है। ...
20 साल तक जमीन के छोटे से टुकड़े और क़बीलाई संस्कृति वाले दिलेर लोगो की बस्ती पर विश्व के 40 देशों एवम् महाशक्ति अमेरिका की फोर्सेज कोशिश करती रही कि वहां भी पश्चिमी जगत बना दिया जाए। उसी समय ( 2001) पाकिस्तान के हामिद गुल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि इस प्रयास में अमेरिका को अमेरिका द्वारा ही हराया जाएगा और वही हुआ। ...
स्लतनतों की कब्रगाह के नाम से प्रसिद्ध धरती का ऐसा भूभाग जिसकी मिट्टी में युद्ध और अशांति जंगली घास की तरह उपजती है। दक्षिण एशिया और मध्य एशिया को जोड़ने वाले इस सामरिक महत्व के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हिस्से को अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है। मैथोलॉजी और किवदंतियों में महाभारत से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य तक का सम्बन्ध तत्कालीन गांधार देश से जोड़ा जाता हैं तो अलेक्जेंडर और रोमन साम्राज्य से भी टकराने के लिए याद किया जाता है किन्तु क्या इसका वास्तविक इतिहास ऐसा ही था ? ...
जिस तेजी से और सामरिक योजना से तालिबान आगे बढ़ रहे है और सम्भावना जताई जा रही है कि वो काबुल फतह कर लेंगे तो क्या इसके बाद क्षेत्र में शांति स्थापित हो जाएगी या एक नया खतरा बढ़ जाएगा। ...
एक ओर तो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध की आशंका बढ़ रही हैं तो दूसरी ओर सभी पक्ष अपनी अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित है। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ साथ अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी को कोई सकारात्मक आश्वासन न मिलना क्षेत्र के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। ...
इस प्रकार बहुचर्चित अफ़गान राष्ट्रपति अशरफ गनी की अमेरिकी यात्रा खत्म हुई । वापसी के बाद अफगानिस्तान एवम् दक्षिण एशिया के भविष्य की क्या स्थिति हो सकती हैं। ...
बीस साल से चल रही जंग की समाप्ति के साथ ही अमेरिका द्वारा अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज की वापसी के साथ ही अफ़गान तालिबान द्वारा अधिकांश क्षेत्रो पर कब्जे के बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की। ...
जिस तेजी से अमेरिकी सैनिकों की वापसी अफगानिस्तान से हो रही है और तालिबान द्वारा अफ़गान जमीन पर अपना कब्ज़ा कायम किया जा रहा है उससे सम्भावित भविष्य के हालात पर तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन से एक बात।। ...
तेजी से अफगानिस्तान को विकल्पहीन छोड़कर निकलती नाटो एवम् अमेरिकी फोर्सेज के बाद अफगानिस्तान का भविष्य एक बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है।। ...
भारतीय विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर प्रसाद की दोहा एवम् कुवैत यात्रा के बीच अफगानिस्तान के सरकारी मीडिया टोलो न्यूज द्वारा भारत द्वारा तालिबान से सम्पर्क करने की खबर का क्या अर्थ हो सकता है ? ...
जैसे जैसे अमेरिकी एवम् नाटो फोर्सेज अफगानिस्तान से अपने अड्डे खाली कर रहे है और अफगानिस्तान से निकल रहे हैं वैसे ही दक्षिण एशिया किसी बड़े युद्ध की ओर तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है।। ...
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कार्यक्रम के साथ दिए जा रहे बयानात के मद्देनजर अभी दक्षिण एशिया में शांति की उम्मीद नहीं की जा सकती। ...