हौसले बुलंद हो तो कामयाबी खुद दरवाज़े पर दस्तक देती हैं। लगभग सौ साल पहले किसी विवाहिता के पति की मृत्यु होने का अर्थ उस महिला का दुर्भाग्य जो उसे सती के नाम पर जिंदा पति के साथ चिता का हिस्सा भी बना सकता था नहीं तो घर से बाहर निकाल बाहर करना तो लाजमी था। ऐसे में भी छोटी आयु में एक बेटी की सिंगल मदर।।। हिंदुस्तान या कहे तो दक्षिण एशिया की पहली महिला इंजीनियर ए. ललिता जी का जन्म 27 अगस्त 1919 को तत्कालीन मद्रास में हुआ, उस समय के रीति रिवाजों के अनुसार इनकी शादी केवल 15 साल की उम्र में हो गई और 18 वर्ष की आयु में इन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी के जन्म के केवल चार महीने बाद इनके पति की मृत्यु हो गई और उसकी दोषी इनकी तथा नवजात शिशु की किस्मत को ठहराया गया। परिणाम स्वरूप इन्हे बेटी सहित ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। इनके पिता उस समय इलेक्ट्रिक इंजीनियर थे लेकिन सुविधा अनुसार ये अपने पिता सुब्बाराव के घर न जाकर बहन के घर रहने लगी जिससे बच्ची की देखभाल में भी असुविधा न हो। इनके पिता ने इनकी पढ़ाई के प्रति रुचि एवम् लगन को देखते हुए इन्हे भी इंजीनियर बनने के लिए प्रेरित किया और गूइंडी के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला करा दिया जहां ये अकेली महिला विद्यार्थी थी। यद्धपि अगले वर्ष सुश्री लिलम्मा तथा थरेशिया नामक दो और युवतियों को भी प्रवेश मिल गया। 1943 में अपने पिता तथा भाई की तरह ये भी इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग की स्नातक बनकर निकली और इस क्षेत्र की पहली महिला इंजीनियर बनने का सम्मान प्राप्त किया। शुरुआती समय में इन्होंने जमालपुर रेलवे वर्कशॉप में कार्यभार संभाला जो निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती तथा कठिनाई भरा रहा होगा। जीवन की कठिन डगर तथा चुनौतियों के बावजूद इन्होंने सिंगल मदर रहकर भी अपनी बेटी श्यामला को पालने, बड़ा करने और शिक्षा दिलवाने में कोई कमी नहीं आने दी। इनकी बेटी श्यामला चेनुलु अब अमेरिका में रहती हैं और उन्हें अपनी मां की उपलब्धियों पर गर्व है। शायद ऐसे व्यक्तित्व केवल प्रेरणा और दिशा दिखाने के कर्तव्य को पूरा करने के लिए ही जन्म लेते हैं इसीलिए मात्र 55 वर्ष की आयु में ये बीमार हो गई तथा लुकमा ए अजल बनकर दुनिया से विदा ले गई।।