लगातार चार महीनों से दिल्ली की सरहदों पर डटे हुए किसान और उनका आंदोलन स्थल जो किसी पुराने बसे बसाए स्थाई शहर जैसा है अचानक फिर से गोदी मीडिया की चर्चा में आना शुरू हुआ है। लेकिन इस बार चर्चा का विषय समर्थन या विरोध न होकर उनकी चिंता की आड़ में उनका हौसला तोड़ना लगता है। क्योंकि खेती किसानी के लिए आजकल का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है इसमें राजस्थान तथा हरियाणा क्षेत्र के किसान सरसो के साथ साथ गेंहू की कटाई एवम् संभालने में व्यस्त होते है तो पंजाब के किसानों के साथ भी यही स्थिति है। तीसरे मोर्चे पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अधिक संख्या में है और उनके क्षेत्र में आजकल गेंहू की कटाई के अतिरिक्त गन्ने को भी जल्द से जल्द खेतों से कटकर गन्ना मिलो तक पहुंचाना जरूरी होता है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत के चुनाव भी उनकी व्यस्तता को बढ़ाने के साथ साथ आपसी सम्बन्धों में भी खटास पैदा कर सकते है जिसकी आशा में सरकार भी है और इसका लाभ उठाकर आंदोलन में सेंध लगाना चाहती होगी। इसीलिए कभी कभी ऐसा लगता है कि क्याआंदोलन का जोर कमजोर होता जा रहा ? इन्हीं प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए News Number की fact check team ने तीनों स्थानों के किसानों से सम्पर्क किया तथा जमीनी हकीकत पता करने का प्रयत्न किया। निसंदेह कुछ उत्साहित दिखने वाले युवा पहले की अपेक्षा कम नजर आए क्योंकि परसो पंजाब के कुछ क्षेत्रों में तेज हवाएं चलने से फसल के नुकसान का अंदेशा जताया जा रहा था दूसरा कुछ दिनों में ही साल भर का अन्न तथा पशुओं के लिए भूसा ( तूडी ) का इंतजाम करना होता हैं तो इसे शॉर्ट ब्रेक कह सकते हैं। लेकिन यह सत्य है कि जो ट्रॉली चार महीने पहले जहां खड़ी हुई थी वहां से न हटी है न वापिस गई है अपितु लोग अवश्य रोटेशन में आते जाते रहते हैं। कुछ ट्रॉली तो फ्रिज पंखे कूलर के साथ और भी लंबे समय के लिए तैयार दिखाई दी। करोना से भय के सम्बन्ध मे बात करने पर अधिकांश का जवाब के बदले सवाल ही था कि चौना ( चुनाव ) ते वक्त करोना कुछ नी बोलदा ? टिकरी बॉर्डर क्षेत्र में हरियाणा तथा मालवा क्षेत्र के किसान अधिक संख्या में होते है तो इनकी संस्कृति माझे और दोआबे से थोड़ी अलग लगती हैं। कभी कभी ऐसा लगता है कि टिकरी बॉर्डर पर डटे हुए किसान विशेषकर युवा किसी भूखे शेर की तरह इस इंतजार में बैठे हैं कि आज्ञा हो और वो अपना जौहर दिखला दे। टिकरी बॉर्डर पर क्योंकि किसान या तो बहुत दूर से आते है या स्थानीय ही है एवम् मेट्रो के नीचे तथा आसपास जगह भी बहुत है तो उन्होंने पक्के जैसे बसेरे बनाने शुरू कर दिए हैं तथा बहुत लंबी अवधि या लगभग स्थाई रूप से डटे रहने की मानसिकता से तैयारियां कर रहे है। यहां कभी कभी संख्या इसलिए कम हो जाती हैं क्योंकि हरियाणा के किसान जानकारी मिलते ही अपने क्षेत्र के बीजेपी विधायक या मंत्री का घेराव करने निकल जाते है। आज सिरसा में बीजेपी सांसद तथा विधायक के विरूद्ध बहुत बड़ा प्रदर्शन किया गया। ऐसा ही मुख्यमंत्री एवम् उपमुख्मंत्री के विरूद्ध किया गया था। पंजाब की तरह ही हरियाणा में भी बीजेपी एवम् जेजेपी के नेता जनता से मूंह छुपाने को मजबूर हो रहे है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवम् उत्तराखंड बहुल गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का आना जाना लगा रहता है और वहां की संख्या का अनुमान लगाना न केवल मुश्किल अपितु असम्भव है क्योंकि मात्र कुछ मिनिट्स की दूरी से भी किसान आंदोलनकारी हज़ारों की संख्या में इकट्ठे भी हो जाते है और अपने घरों को भी लौट सकते है। लेकिन यदि किसी प्रकार यदि सरकार करोना की आड़ से आंदोलन में बिखराव करने या समाप्त करने का प्रयत्न करती हैं तो इसके क्या परिणाम होंगे ? हालांकि राकेश टिकैत ने स्पष्ट कर दिया है कि वो सरकार के दबाव में नहीं आएंगे और सरकार किसान आंदोलन को शाहीन बाग़ न समझे किन्तु फिर भी यदि वैसा ही हो गया तो ! पंजाब में यह अशांति पैदा कर सकता है और इस बार यदि पंजाब राज्य में कोई हिंसक आंदोलन शुरू हो गया तो वर्तमान सरकार द्वारा उसको शांत करने में कठिनाई हो सकती हैं। हरियाणा, विशेषकर दिल्ली के आसपास के क्षेत्रो के युवा पहले से ही बेरोजगारी के कारण परेशान हैं और इस पर भी उनकी खेती तथा जमीन जायदाद पर संकट खड़ा लगने लगा तो उनका गुस्सा भी संभाला नहीं जा सकेगा तथा याद रखना चाहिए कि पुलिस कर्मचारी भी अंततः तो इन्हीं किसानों के बच्चे है तभी तो राज्य के मंत्री और मुख्यमंत्री भी कोई रैली तक नहीं कर पा रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश इन सब से संवेदनशील इलाका इस संदर्भ में है कि वहां राजनेताओं द्वारा सदैव धर्म के आधार पर बांट कर शासन किया गया या कह सकते हैं कि मूर्ख बनाया गया किन्तु किसान आंदोलन ने वो झूठी दीवारें भी तोड़ दी और अब धर्म के नाम पर समाज के हिस्से करना सम्भव नहीं होगा इसलिए पराजित होकर वापस गया हुए किसान एकजुट जब बीजेपी के विरोध में सड़क पर उतर आया तो राज्य की व्यवस्था ही छिन्न भिन्न हो सकती हैं। कुल मिलाकर यदि विश्लेषण किया जाए तो किसान आंदोलन को जबरदस्ती समाप्त कराना आंदोलन चलते रहने से ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है। सबसे बेहतर उपाय तो यही है कि सरकार द्वारा किसानों को सम्मानपूर्वक नेक नियत से समाधान के लिए आमंत्रित करना चाहिए एवम् उनकी जायज़ मांगो को स्वीकार कर लेना चाहिए। यहां प्रदर्शित चित्र मे टिकरी बॉर्डर पर बनाई गई मूर्ति प्रदर्शित है जिसमे एक किसान अपने साथी को कंधे पर उठाकर ले जाता दिख रहा है तथा दूसरा चित्र सिरसा में हुए किसानों के विरोध का है जहां पुलिस बेरीकेट्स तोड़कर किसानों द्वारा बीजेपी नेताओ का विरोध किया गया।
19 नवम्बर सुबह नौ बजे भारत के अभी सूचना और प्रसारण माध्यमों पर भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी अवतरित हुए। आशा की जा रही थी कि श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व की शुभकामनाए देने के लिए उनका संबोधन होगा क्योंकि शीघ्र ही पंजाब में चुनाव भी होने है।हालांकि उससे दो दिन पहले ही उनके निकटतम माने जाने वाले अमित शाह ने करतार पुर कॉरिडोर को दोबारा शुरू करने की घोषणा कर दी थी। ...
21 नवम्बर 2021 भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा खेती विरोधी कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद आज दिल्ली सरहद स्थित किसान आंदोलन स्थल पर श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश उत्सव के उल्लास में शोभा यात्रा निकाली गई और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आपसी चर्चा के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। ...
भारत ! एक देश जिसे दुनियां उसकी सॉफ्ट पॉवर, सर्वधर्म समभाव, लोकतंत्र और समाजिक सौहार्द के कारण आदर सम्मान की नज़रों से देखती थी। ...
बीती रात दिल्ली हरियाणा बॉर्डर स्थित सिंघु बॉर्डर किसान मोर्चा स्थल से एक युवक का शव पुलिस बेरीकेट पर लटका हुआ पाया गया जिसे धारदार हथियारों से मारे जाने के साक्ष्य प्रथम दृष्टया प्राप्त हुए है। ...
किसान आंदोलन और सरकार की साजिशें दोनों आमने सामने अपनी अपनी चाले चल रही है लेकिन हरियाणा के जाट समुदाय की दहिया खाप ने बीजेपी द्वारा फुट डालो राज करो की नीति का उत्तर अनाज से भरी ट्रॉलियां भेज कर दिया।। ...
हरियाणा के विधायक देवेंद्र बबली द्वारा किसानों को गालियां दिए जाने और तीन किसानों की गिरफ्तारी के विरोध में आज हरियाणा के टोहाना में महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। ...
भारत सरकार द्वारा पारित तीन किसान विरोधी कानूनों के विरूद्ध आंदोलन कर रहे किसानों द्वारा विरोध दिवस।
किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने के साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 26 मई को काला दिवस मनाया जा रहा है। ...
छह महीने से दिल्ली की सरहदों पर आंदोलन कर रहे किसानों द्वारा आंदोलन को फिर से नई ऊर्जा देने की तैयारी ...
हमे भूल तो नहीं गए ? बेशक बच्चे भूल जाए लेकिन मां बाप दुख सहकर भी बच्चो के लिए कुर्बानियां करते हैं।
बेमौसम बरसात के कारण किसान आंदोलन स्थल पर परेशानियां बढ़ी लेकिन उससे ज्यादा दुखद सरकार, मीडिया और दिल्ली वासियों द्वारा नजरंदाज किया जाना है। ...
बंगाल इलेक्शन के रिजल्ट्स और किसान आंदोलन का सम्बन्ध एवम् भविष्य के सम्भावित बदलाव की आहट। ...
गर्मियों के मौसम में घोड़ों को होने वाली परेशानी के कारण निहंग साहेबान द्वारा दिल्ली पुलिस से बेरीकेट्स हटाने की मांग पर विचार के लिए अधिकारी तैयार।। ...
हरियाणा पंजाब बॉर्डर से किसान यूनियन उग्रहां की अपील पर हज़ारों किसानों का दिल्ली की ओर मार्च ...
गाजीपुर बॉर्डर स्थित किसान आंदोलन स्थल पर तेज आंधी के कारण कई तम्बू तथा डेरे गिर गए । ...
वैसाखी नववर्ष पर किसान आंदोलन स्थल पर अपनी मजबूरी का उत्सव मनाते किसान ...
रात भर किसान आंदोलन को केएमपी पेरीफेरल रोड पर जीवित रखने की जद्दोजहद में डटे हुए किसान। ...
किसानों द्वारा कुंडली मानेसर रोड जाम किया गया। ...
आज कुंडली बॉर्डर पर हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में शनिवार 10 अप्रैल को केएमपी पेरीफेरल रोड को 24 घंटे के लिए जाम करने की घोषणा की गई। ...
कुंडली बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आयोजित विशेष प्रेस कांफ्रेंस में किसान नेता उग्राहां साहब ने सरकार को सीधी चुनौती देते हुए संसद घेराव की घोषणा कर दी। ...
कड़कड़ाती सर्दी और बारिश के साथ बर्फीली हवाओं और जीत चुके किसान अब दिल्ली की सरहदों पर अपने मोर्चो से गर्मी को चुनौती देने के लिए भी तैयार है। ...
दिल्ली की सरहदों पर चल रहे किसान आंदोलन को समर्थन देने हेतु एक ओर स्थानीय निवासी भी आते है तो विदेशो में रहने वाले भारतीय जिनकी आत्मा में भारत की मिट्टी की सौंधी खुशबू महकती है वो भी निरन्तर साथ खड़े होकर अपना समर्थन देते है। ...
भारत उत्सवों और तीज त्यौहारों का देश है और ऐसे में होली को विशेष दर्जा केवल इसलिए दिया जाता हैं क्योंकि एक ओर तो सर्दी की विदाई होती हैं तो दूसरी ओर लहलहाती फसलें किसानों को आर्थिक संबल देने के लिए पुकार रही होती हैं। इस वर्ष की होली किसानों के बीच, किसानों के साथ। ...